भारतीय संविधान के 97 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2011 द्वारा जोडें गये अनुच्छेद 19 (ग) में भारत के सभी नागरिकों को संगम या संघ के साथ-साथ सहकारी समिति बनाने का मूल अधिकार अंतः स्थापित किया गया। संविधान के अनुच्छेद 43 (ख) में राज्य सहकारी समिति के ऐच्छिक गठन, स्वायत्त कार्यवाही, लोकत्रांत्रिक नियंत्रण और व्यावसायिक प्रबन्धन में वृद्धि करने हेतु राज्य सरकार के लिए नीति निदेशक तत्व निर्धारित किये गये है। संविधान में जोडें गये भाग 9(ख) में सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करते हुए अनुच्छेद 243-यट (2) में व्यवस्था कि गयी कि सहकारी समिति के सभी निर्वाचनों के लिए निर्वाचक नामावली की तैयारी तथा उसके संचालन का अधीक्षण, निदेशन तथा नियंत्रण राज्य विधान मण्डल द्वारा विधि द्वारा यथा उपबन्धित ऐसे प्राधिकारी अथवा निकाय में निहित होगा, जैसा कि राज्य विधान मण्डल विधि द्वारा निर्वाचन के संचालन के लिए प्रक्रिया और दिशानिर्देश का प्राविधान करें।

“भारत का संविधान” के अनुच्छेद 200 के अधीन राज्यपाल महोदय ने उत्तरांचल विधान सभा द्वारा पारित उत्तरांचल सहकारी समिति विधेयक, 2003 को दिनांक 21-5-03 को अनुमति प्रदान की और वह उत्तरांचल अधिनियम संख्या 05, सन् 2003 के रूप में सर्व साधारण की सूचनार्थ इस अधिसूचना द्वारा प्रकाशित किया जाता है।

राज्यपाल भारत का संविधान के अनुच्छेद 243ZK ( 2 ) तथा उत्तराखण्ड सहकारी समिति अधिनियम, 2003 समय समय पर यथासंशोधित की धारा 29 ( 3 ) सहपठित धारा 128 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण के क्रियान्वयन हेतु निम्नलिखित विनियमावली बनाते है ।

1. संक्षिप्त नाम प्रारम्भ और विस्तार:-

अध्याय- एक प्रारम्भिक
(1) इस विनियम का संक्षिप्त नाम ” उत्तराखण्ड सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण की सेवा शर्तों के बारे में विनियम, 2016 ” है।
(2) यह दिनांक 22 मार्च, 2013 से प्रवृत्त हुआ समझा जायेगा।

परिभाषाएं:-
यदि संदर्भ और विषय में कोई बात प्रतिकूल न हो तो इस विनियम में-
(क) ‘राज्यपाल’ से उत्तराखण्ड राज्य के राज्यपाल अभिप्रेत हैं।
(ख) ‘प्राधिकरण’ से उत्तराखण्ड सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण अभिप्रेत है।
(ग) ‘अध्यक्ष’ से उत्तराखण्ड सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण के अध्यक्ष अभिप्रेत है।
(घ) ‘सदस्य’ से उत्तराखण्ड सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण के सदस्य अभिप्रेत है ।
‘संविधान’ से भारत का संविधान अभिप्रेत है।

प्राधिकरण का गठन, नियुक्ति, पदच्युति, कार्यकाल :

प्राधिकरण 
3. राज्य की सहकारी समितियों के सभी निर्वाचनों के लिए निर्वाचक नियमावलियां तैयार करने और उन सभी निर्वाचनो के संचालन, अधीक्षण, निर्देशन एवं नियन्त्रण हेतु उत्तराखण्ड सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण होगा ।

अध्यक्ष एवं सदस्य :
4. प्राधिकरण में एक अध्यक्ष तथा दो सदस्य होंगे:-
(क) राज्य सरकार के सचिव पद से अनिम्न सेवारत अथवा सेवा-निवृत्त अधिकारी, जिसको निर्वाचन कार्य का समुचित अनुभव हो । अध्यक्ष

(ख) राज्य सरकार के न्यूनतम द्वित्तीय श्रेणी के सेवारत या सेवानिवृत्त अधिकारी, जिन्हें सहकारी समितियों के निवार्चन का अनुभव हो । सदस्य

सचिव

5. प्राधिकरण का सचिव राज्य के सहकारिता विभाग के समूह क से अनिम्न स्तर के अधिकारी से प्रतिनियुक्ति द्वारा भरा जाएगा, जो प्राधिकरण के नियन्त्रणाधीन होगा।

गणपूर्ति –
6. प्राधिकरण की गणपूर्ति कम से कम दो सदस्यों (अध्यक्ष / सदस्य को सम्मिलित करते हुए) से होगी। किसी प्रकरण में मतभिन्नता/विवाद की स्थिति में पूर्ण पीठ द्वारा विचार किया जाएगा तथा निर्णय बहुमत के आधार पर लिया जाएगा।

नियुक्ति
7. सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाएगी।
(क) प्राधिकरण का अध्यक्ष या सदस्य अपना पद धारण करने की तिथि से तीन वर्ष के लिए पद पर बना रहेगा। प्रतिबन्ध यह है कि कोई भी व्यक्ति प्राधिकरण का अध्यक्ष अथवा सदस्य नहीं रहेगा यदि :-
(1) उसने 65 वर्ष की आयु पूर्ण कर ली हो,
(II) दिवालिया घोषित हो गया हो,
(D) नैतिक भ्रष्टाचार से जुड़े किसी अपराध में सजा पा चुका हो,
(TV) अपने कार्यकाल के दौरान अन्य किसी स्थान पर सवैतनिक सेवायोजित रहा हो,
(v) शारीरिक अथवा मानसिक रूप से अक्षम हो गया हो,
(VI) मा0 उच्च न्यायालय के सेवा निवृत्त न्यायाधीश द्वारा की गयी जांच में दोषी सिद्ध हो जाए ।

(ख)– यदि कोई व्यक्ति अपनी अधिवर्षता आयु पूर्ण करने से पूर्व अध्यक्ष / सदस् रूप में कार्य कर रहा है. तो भले ही वह अपनी भूल सेवा से सेवानिवृत्त हो चुका हो परन्तु प्राधिकरण के सदस्य के रूप में नियुक्ति की तिथि से तीन वर्षे तक कार्य करता रहेगा, और उसके लिए अलग से अधिसूचना जारी करने की आवश्यकता नहीं होगी।
(ग) – प्राधिकरण के अध्यक्ष व सदस्य सरकार को दो माह की नोटिस के पश्चात् किसी भी समय अपना पदत्याग कर सकते हैं।
(घ) – कोई भी व्यक्ति जो किसी सहकारी समिति की प्रबन्ध समिति का सभापति / उपसभापति या प्रशासक हो प्राधिकरण के अध्यक्ष अथवा सदस्य के रूप में नियुक्ति हेतु पात्र नहीं होगा।

प्राधिकरण –
9 प्राधिकरण का मुख्यालय ऐसे स्थान पर होगा जैसा राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किया जाए।

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